۴ آذر ۱۴۰۳ |۲۲ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 24, 2024
लीडर

हौज़ा/सुप्रीम लीडर आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने तबरेज़ के अवाम के 29 बहमन 1356 हिजरी शम्सी बराबर 18 फ़रवरी सन 1978 के आंदोलन की सालगिरह के मौक़े पर गुरूवार की सुबह पूर्वी आज़बाइजान प्रांत के अवाम को वीडियो लिंक के ज़रिए संबोधित किया। उन्होंने तबरेज़ के अवाम के आंदोलन को पूरी ईरानी क़ौम के आंदोलन की अहम कड़ी और इस्लामी क्रांति की कामयाबी का भूमिका क़रार दिया।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने अपनी स्पीच में कहा कि कोरोना वायरस, आर्थिक मुश्किल, दुश्मनों के ज़हरीले प्रोपैगंडों और कुछ आंतरिक तत्वों की ओर से इस घिनौने प्रोपैगंडे की मदद जैसे अनेक मसलों से घिरे होने के बावजूद, अवाम ने इस्लामी क्रांति की कामयाबी की सालगिरह पर हर साल निकलने वाले शानदार जुलूस इस तरह से निकाले कि सूत्रों के मुताबिक़, ज़्यादातर प्रांतों में जुलूस में भाग लेने वालों की तादाद पिछले साल से ज़्यादा थी।

इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि इस साल इस्लामी क्रांति की कामयाबी की सालगिरह का प्रोग्राम हक़ीक़त में हैरतअंगेज़ और तारीफ़ के क़ाबिल था क्योंकि कोरोना वायरस, आर्थिक मुश्किलों और दुश्मन के झूठे प्रोपैगंडों के बावजूद अवाम ने पिछले साल से ज़्यादा तादाद में इस प्रोग्राम में भाग लिया।

उन्होंने देश की मौजूदा ज़रूरतों के साथ ही भविष्य की ज़रूरतों पर ध्यान दिए जाने पर ताकीद की। इस्लामी क्रांति के नेता ने कहाः “अगर आज हमने वैज्ञानिकों और रिसर्च स्कॉलर्ज़ की ट्रेनिंग, इल्मी व वैज्ञानिक आंदोलन की मज़बूती, नस्ल बढ़ाने, देश की तरक़्क़ी के लिए ज़रूरी तत्वों यानी नौजवानों की तरबियत जैसी भविष्य की बुनियादी ज़रूरतों के बारे में न सोचा तो 20 साल बाद हम मुश्किलों में घिर जाएंगे।

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने परमाणु ऊर्जा को भविष्य की बुनियादी ज़रूरतों में क़रार देते हुए कहाः “परमाणु मसले पर दुश्मन मोर्चे के अड़ जाने, हमारी तरफ़ से शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल सीमित होने की जानकारी के बावजूद अन्यायपूर्ण पाबंदियां लगाने, परमाणु बम से ईरान का फ़ासला कम होने जैसी बेबुनियाद अफ़वाहें फैलाने का मक़सद यह है कि ईरान की उस प्रगति को रोक दिया जाए जो भविष्य की ज़रूरतों को पूरा करने की गैरंटी है।

सुप्रीम लीडर ने इस सिलसिले में एक मिसाल पेश की जहाँ लापरवाही और सुस्ती अगले बरसों में मुश्किलें पैदा होने की वजह बनी। आपने परमाणु समझौते की ओर इशारा किया और कहाः सन 2015 और 2016 के बरसों में परमाणु समझौते के बारे में मेरा एतेराज़ यह था कि इस समझौते में कुछ बिन्दु पर ध्यान दिया जाना चाहिए था ताकि बाद में मुश्किल पेश न आए और मैंने उन्हें बार बार इस बात को याद दिलाया, लेकिन इनमें से कुछ बिन्दुओं पर ध्यान नहीं दिया गया और बाद में वह मुश्किलें पेश आयीं जिनको सभी देख रहे हैं। इसलिए भविष्य पर नज़र रखना ज़रूरी है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने पिछले 4 दशकों के दौरान अंजाम पाने वाले अनगिनत कामों को बहुत ही फ़ायदेमंद और क्रांति के बाक़ी रहने का सबब बताया और कहाः मौजूदा मुश्किलों की वजह से यह न हो कि हम अनगिनत बड़े कारनामों को भूल जाएं।

इस्लामी क्रांति के नेता ने अनेक विभागों में हैरतअंगेज़ वैज्ञानिक तरक़्क़ी और औसत अंतर्राष्ट्रीय स्तर से कई गुना ज़्यादा वैज्ञानिक तरक़्क़ी के बारे में अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के इक़रार की तरफ़ इशारा करते हुए कहाः इस्लामी क्रांति की वजह से सड़क निर्माण, बिजली सप्लाई, सेहत और इलाज की सेवाओं जैसे इंफ़्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में भी हैरतअंगेज़ तरक़्क़ी हुयी और अगर क्रांतिकारी व जेहादी सरगर्मियां न होतीं तो यक़ीनी तौर पर यह तरक़्क़ी हासिल न हो पाती।

सुप्रीम लीडर ने क्रांति के बाद ईरान में आर्थिक हालात में बेहतरी के सिलसिले में वैश्विक संगठनों के इक़रार की ओर इशारा करते हुए कहाः सामाजिक न्याय, संपत्ति के न्यायपूर्ण बटवारे और कमज़ोर वर्ग तक सहूलतें पहुंचाए जाने के सिलसिले में हमेशा मेरी तरफ़ से टिप्पणी होती है, लेकिन आर्थिक मामले में भी दुनिया के मशहूर आर्थिक सेंटरों की रिपोर्टों के मुताबिक़, ईरान में बड़ी तरक़्क़ी हुयी है और इसी के साथ बहुत सारी चीज़ों में हम आत्म निर्भर हुए हैं और देश के उद्योगपतियों और प्रोडक्ट्स बनाने वालों में आत्मविश्वास भी बढ़ा है।

सुप्रीम लीडर ने इस बात पर ताकीद की कि पैदावार के क्षेत्र में अंजाम पाने वाले कारनामों को लोगों तक पहुंचाने में राष्ट्रीय मीडिया की बड़ी ज़िम्मेदारी है, यह हक़ सही तरह से अदा नहीं हो पाया और यह काम ज़रूर अंजाम पाना चाहिए।

इस्लामी क्रांति के नेता ने कहा कि विभिन्न क्षेत्रों में सक्रिय सभी लोगों ने इन 43 बरसों में क्रांति के जारी रहने में मदद की है, अलबत्ता कभी कभी कुछ गफ़लत, लापरवाही और बुरी नीयत भी दिखने में आयी, अगर ये चीज़ें न होतीं तो देश की हालत और भी बेहतर होती।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई के मुताबिक़, क्रांति के ख़िलाफ़, इतनी ज़्यादा दुश्मनी की वजह, इस क्रांति का ज़िन्दा होना और इसकी लगातार तरक़्क़ी है। आपने कहाः क्रांति का ज़िन्दा होना यानी क्रांति के लक्ष्यों से अवाम और नई नस्ल का लगाव है और अगर यह लगाव और इस रास्ते में दृढ़ता न होती तो दुश्मन को इतनी ज़्यादा नीचता दिखाने की ज़रूरत न होती, इसलिए यह दुश्मनी, क़ौम की ओर से इस्लामी क्रांति के लक्ष्यों से वफ़ादारी और उसकी दृढ़ता की वजह से है।

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने कहा कि ईरानी क़ौम की फ़ख़्र करने लायक दृढ़ता और प्रतिरोध से न सिर्फ़ देश की तरक़्की हुयी, बल्कि क्षेत्र पर भी उसका बहुत असर है। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में दिन प्रतिदिन प्रतिरोध ने साम्राज्य के झूठे भरम के टुकड़े टुकड़े कर दिए हैं और अमरीका के मुक़ाबले में क़ौमों को ज़बान खोलने की हिम्मत दी है और हमें क्रांति को जारी रख कर इस नेमत की क़द्र करनी चाहिए।

सुप्रीम लीडर ने नौजवानों को एक बड़ी नसीहत करते हुए कहा कि उन्हें यह देखना चाहिए कि दुश्मन ने किस चीज़ को टार्गेट किया है और उसके ठीक विपरीत काम करना चाहिए। उन्होंने कहाः दुश्मन ने आज जनमत में ख़ास तौर पर नौजवानों के मन को निशाना बना रखा है ताकि अरबों डॉलर ख़र्च करके और अपने थिंक टैंक्स में अनेक तरह की साज़िशें तैयार करके ईरानी क़ौम, ख़ास तौर पर नौजवानों को क्रांति के रास्ते से हटा सके।

इस्लामी क्रांति के सुप्रीम लीडर ने आर्थिक दबाव और मीडिया ऑप्रेशन को इस्लामी व्यवस्था से अवाम को दूर करने और उनकी सोच ख़राब करने के लिए इस्तेमाल होने वाले साम्राज्य के दो मुख्य हथकंडे बताते हुए कहाः झूठ और क्रांति के अहम स्तंभों समेत क्रांति की तरक़्क़ी में अहम रोल निभाने वाले केन्द्रों के ख़िलाफ़ इल्ज़ाम वह शैली है जो मीडिया ऑप्रेशन में इस्तेमाल हो रही है।

आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई ने इसी तरह सभी लोगों ख़ास तौर पर नौजवानों को दुआ, अल्लाह की निकटता हासिल करने और रजब की 15 तारीख़ की बर्कतों से फ़ायदा उठाने की नसीहत करते हुए कहाः अल्लाह से संपर्क से ज़िंदगी, देश और क्रांति के भविष्य को बर्कत मिलती है।

सुप्रीम लीडर ने 18 फ़रवरी 1978 को तबरेज़ के अवाम के आंदोलन को ईरानी क़ौम के अज़ीम इंक़ेलाब की एक कड़ी और इस्लामी इंक़ेलाब की कामयाबी का भूमिका क़रार दिया। उन्होंने इस दिन को तबरेज़ का नाम रौशन होने का दिन क़रार दिया और इस बात पर जोर देते हुए कि इस दिन तबरेज़ के अवाम की पहल, क़ौम की जिद्दो जेहद जारी रहने और क्रांति के सफल होने की वजह बनी, कहाः यह क्रांति बंदूक़, राजनीति और पार्टीबाज़ी से कामयाब नहीं हई, बल्कि क्रांति की कामयाबी की अस्ल वजह मैदान में अवाम की मौजूदगी थी और तबरेज़ के अवाम ने अपनी पहल से इस्लामी क्रांति को रफ़्तार दी।

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